Wednesday, October 27, 2010

irony that confuses ..

जहा सूखे घडो के ढेर को
लम्बी क़तर में मुह चिड़ाते
देखा प्यासी रोती सूखी आँखों ने
कुआ सूखा , नल है सूखा
चिलचिलाती धुप जलाती
गीली जीभ को भी सूखा रही है

सूखी घास पानी में गूंथे
बूखी रोती मुनिया , छाती पर बांधे
खाली बर्तन टन टन करते टंकार
कर्जा रुपी काली डायन , सीने पर कर रही झंकार
पर बापू किसान , चंद घंटे पहले
आत्महत्या का हुआ शिकार

सड़के कच्ची, बिजली न पहुंचे
भयंकर गरीबी जबड़ो में दबोचे
शिक्षा स्कूल ना समझे जरूरी
बीवी बचो संग , जम कर करो मजूरी ,

तब कोई कहता मेरा देश में कमी है
कमी देश में पानी की और अन्न की
और सबसे भारी कमी धन की ...

यह सच्चाई नहीं , पर है एक सरल बहाना
कमी कमी का डंका बजा कर , ५ साल तक कुर्सी ज़माना
प्रपंच गडा जाता है , कमी का भयंकर
भुवन भवन गगन चूमते , बनते जाते उनके समय पर

क्योंकि जहा एक तरफ का भारत प्यासा
दूजी तरफ है नग्न तमाशा
झुण्ड रैन डांस में नाचे
खेतो का पानी , पैसे वाले नाचने को खींचे

क्योंकि जहा एक तरफ का भारत भूखा
वही सड़कर गलकर ढेरो टन में
फेंका जाता कनक गट्टर में
जहा मुनिया रोये निवाले को एक
भर्ष्टाचार निगले वह मुनिया अनेक


जहा एक तरफ मेरा देश गरीब , कमी धन की जहा बड़ी है
खेलो का बहाना बनाकर , करोड़ो की लूट मची है

स्तादियम फ्ल्योवर ब्रिज और सड़के
पैसो की ज्यों बाड है आई , कहते खुद को फिर भी कड़के


कभी नाम पर चारे के ,कभी नाम पर बन्दूको के
कभी नाम पर खेलो के ,खाया खाया कितना खाया ,
लोभ की गोली खायी, और दुश्चरित्र के चूरन से सब पचाया

यु शर्म करे और सोचे खुद में

जवाब क्या देंगे गर पूछे
मुनिया किसना सुखिया हम से
क्या देश है तुम्हारी निजी जायदाद
लूटा खसोटा भेडियो सा , देख का बस अपना स्वार्थ

एक स्तादियम हजार करोड का
भर पायेगा क्या पेट हमारा

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